काले - काले बादलों का
कर्कश यह शोर - शराबा
पाप संगीत, गर्जन तर्जन
सुहाता नहीं सावन को कभी,
इसलिए कर ली है दोस्ती
इसने पवन के संग।
पाप संगीत, गर्जन तर्जन
सुहाता नहीं सावन को कभी,
इसलिए कर ली है दोस्ती
इसने पवन के संग।
जब भी घने काले बादल
आते हैं, घटा बन छाते हैं
पीछे से पावन ज़ोर लगाता
उनको दूर तक भगा आता,
पावन जबतक कुछ सुस्ताता
सावन हल्के बादलों को बुलाता
रिमझिम फुहारों को बरसाता
कभी रेशम सी पतली सी लड़ी
कभी शबनमी फुहार बन जाता
.तब सावन मंद मंद कुसकाता।
आते हैं, घटा बन छाते हैं
पीछे से पावन ज़ोर लगाता
उनको दूर तक भगा आता,
पावन जबतक कुछ सुस्ताता
सावन हल्के बादलों को बुलाता
रिमझिम फुहारों को बरसाता
कभी रेशम सी पतली सी लड़ी
कभी शबनमी फुहार बन जाता
.तब सावन मंद मंद कुसकाता।
उपेक्षित पवन सत्य जान चुका है .
अब सावन को पहचान चुका है
यह सावन तो है कुशल व्यापारी
प्रोफेशनल आर्टिस्ट,फोटोग्राफर
नए- नए नायक, नायिकाओं के
अंतरंग चित्र कैमरे मे उतारता
फोटोशोप मे खूब सजाता और
बाजार मे ऊंचे मूल्य पर बेंच आता।
अब सावन को पहचान चुका है
यह सावन तो है कुशल व्यापारी
प्रोफेशनल आर्टिस्ट,फोटोग्राफर
नए- नए नायक, नायिकाओं के
अंतरंग चित्र कैमरे मे उतारता
फोटोशोप मे खूब सजाता और
बाजार मे ऊंचे मूल्य पर बेंच आता।
अब ठन गयी है सावन - पवन मे
इसलिए सावन रहता है पूरा सूखा
या बन जाता है पूरा भादों सरीखा
सावन पुनः परेशान है क्योकि
छिनता जा रहा है उससे परंपरागत
'रोमांटिक माह' का यह विशिष्ट पद,
इसलिए सावन रहता है पूरा सूखा
या बन जाता है पूरा भादों सरीखा
सावन पुनः परेशान है क्योकि
छिनता जा रहा है उससे परंपरागत
'रोमांटिक माह' का यह विशिष्ट पद,
यह है उसके लिए दुखद, त्रासद
सावन को पवन की याद सताती है
लेकिन इस जग ऐसा कहाँ हो पता
कोई टूटा रिश्ता शीघ्र कहाँ जुड़ पाता? ,
सावन को पवन की याद सताती है
लेकिन इस जग ऐसा कहाँ हो पता
कोई टूटा रिश्ता शीघ्र कहाँ जुड़ पाता? ,
डॉ जयप्रकाश तिवारी
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