बहुत ..बीमार... है ..माँ....
आज माँ के पास बैठा ..हूँ.
बहुत निकट, उससे एकदम सट कर.
तो क्या एक दिन माँ मर जायेगी?
क्या माँ फिर नजर नहीं आएगी?
ना जाने कैसे मन की बात सुन लिया?
वह धीरे ..से ...फुसफुसाई..........,
बहुत धीमी मंद आवाज आई.....-
"माँ मरती नहीं, कभी मरती नहीं बेटे "
हाँ, माँ ने बिलकुल ठीक कहा था:
माँ मरती नहीं ...माँ मर नहीं सकती,
देख रहा हूँ उसे..., प्रकृति में ,
शून्य में...विलीन होते हुए ....आज...
माँ, अब शारीर नहीं है.., रूप नहीं है...,
स्वरुप नहीं है.., आकृति..नहीं है .
माँ, केवल शब्द ....नहीं है ....
'शब्द' - 'अर्थ' के बंधन को वह तोड़ चुकी है.
अब तो ...........अब ........तो...........
माँ, एक सम्पूर्ण ... अभिव्यक्ति है........
माँ, एक जिम्मेदारी है, एक दायित्व है,
माँ ही पृथ्वी के रूप में उत्पादक है,
नदी और जल रूप में पोषक है,
मेघ रूप में वर्षा है, पुष्प रूप सुगंध है,
झरना रूप प्रवाह है, पपीहा रूप में गान है,
राग रूप दुलार है वह, और डांट रूप निर्माण है.
रोटी रूप में भोजन है वह, श्वेद रूप में श्रम है.
थल रूप ठोस वही, तरल रूप में बहता जल है.
स्वप्न रूप में लक्ष्य वही है, साहस रूप में गति है.
प्रेरक वही, प्रेरणा वही, सन्मार्ग रूप प्रगति है.
माँ अब वैयक्तिक आत्मा नहीं..., .
विश्वात्मा है......, परमात्मा है.....
माँ को अब इसी रूप में निहारना है,
माँ तो दे चुकी, उसको जो कुछ भी देना था.
सन्मार्ग दिखाने आयी थी, नाता तो एक बहाना था.
अब हमको पथ पर चलना है,
जो कुछ है अबतक सिखलाया,
काम वही अब करना है. प्रकृति रुपी माँ!,
हे विश्व रुपी माँ!! , हे श्रृष्टि रुपी माँ!!! ,
तुम्हे नमन!, बारम्बार नमन!! , कोटिशः नमन!!!