कवि को
कहा जाता है क्यों
ऋषि मनीषी सर्जक
या युग द्रष्टा ?
क्या इसलिए की वह
संचायक है शब्दों का ?
क्या है वह, कोई चारण?
वेतन भोगी? राजदरबारी?
कहा जाता है क्यों
ऋषि मनीषी सर्जक
या युग द्रष्टा ?
क्या इसलिए की वह
संचायक है शब्दों का ?
क्या है वह, कोई चारण?
वेतन भोगी? राजदरबारी?
अरे! सर्जक है, युगद्रष्टा है
तलाशता है वह, शब्दों को
तराशता है वह, शब्दों को
निखरता है वह, शब्दों को
चिंतन मनन अनुभव की
प्रज्वलित भट्ठी मे तपाकर
बनाता है एक भाव भूमि
तेजोमयी - ज्योतिरमयी,
दिव्यर्थों की प्राण फूँक कर।
तलाशता है वह, शब्दों को
तराशता है वह, शब्दों को
निखरता है वह, शब्दों को
चिंतन मनन अनुभव की
प्रज्वलित भट्ठी मे तपाकर
बनाता है एक भाव भूमि
तेजोमयी - ज्योतिरमयी,
दिव्यर्थों की प्राण फूँक कर।
कोमा मे स्पंदन यदि सरल नहीं
तो धूमिल मटमैले शब्दों मे
प्राण संचार सरल है कैसे?
कवि का तो सत्कर्म यही
कवि का तो सीधा धर्म यही
'सृजन', घिसे-पिटे शब्दों से
अटपटे - चटपटे शब्दों से
नए संदर्भ, नए परिप्रेक्ष्य से
नए बिम्ब और नए प्रतीक से
कवि सौंदर्य, साहित्यिक विमर्श
सत्ता द्रोह या सामाजिक उत्कर्ष।
तो धूमिल मटमैले शब्दों मे
प्राण संचार सरल है कैसे?
कवि का तो सत्कर्म यही
कवि का तो सीधा धर्म यही
'सृजन', घिसे-पिटे शब्दों से
अटपटे - चटपटे शब्दों से
नए संदर्भ, नए परिप्रेक्ष्य से
नए बिम्ब और नए प्रतीक से
कवि सौंदर्य, साहित्यिक विमर्श
सत्ता द्रोह या सामाजिक उत्कर्ष।
कवि शब्दों को नंगा नहीं करता
वह शब्दों को गंदा नहीं करता
वह शब्दों का अलंकरण करता
अर्थ मे क्या चमत्कारण करता
च्युत शब्दों की शक्ति परखता
घिसे शब्दों पे मुखौटा रखता
शब्दों मे कवि जान फूंकता
कविता मे कवि प्राण फूंकता ॥
वह शब्दों को गंदा नहीं करता
वह शब्दों का अलंकरण करता
अर्थ मे क्या चमत्कारण करता
च्युत शब्दों की शक्ति परखता
घिसे शब्दों पे मुखौटा रखता
शब्दों मे कवि जान फूंकता
कविता मे कवि प्राण फूंकता ॥
डॉ जयप्रकाश तिवारी