Thursday, May 29, 2014

मैं हूँ कौन ?

मैं कौन हूँ? घर है कहाँ?
मैं हूँ कहाँ? अब हूँ कहाँ?
मैं बहकती, मैं चहकती
पर हूँ कहाँ? घर है कहाँ?
ढूँढ चुकी ऊपर से नीचे
और ढूँढा डाली - डाली
हुई बावली ऐसी मैं तो
फिरूँ नाचती मतवाली ।

पत्ता पत्ता ढूंढ चुकी पर
मिला नहीं अपना ही पता
फल के अंदर ढूंढ चुकी
कच्चा हो या हो वह पका,
ये लोग मुझे ही ढूंढ रहे
गुस्से मे टहनी तोड़ रहे
हुये ऐसे वे मतवाले हैं
बिन बुद्धि तन को ढो रहे ।

कुछ दंभ प्रदर्शित करते हैं
कुछ दाम प्रदर्शित करते हैं
कुछ हैं इनमे शर्मीले इतने
मन ही मन मे वे तरसते है,
जब कुचला मन को साधिकार
तब निकली मुह से चित्कार
तब जाना सु-मन मे रहती हूँ
और नाम मेरा सुगंध है ॥

-    डॉ॰ जयप्रकाश तिवारी