तो एक बार
तुम दर्पण देखो.
अब तक का
अपना अर्पण देखो.
देख सको तो
मुझे भी देखो,
उसमे मेरा
समर्पण भी देखो.
नहीं रहा हूँ
छुद्र भाव कभी
नहीं संकुचित
मेरा मन .....
किया समर्पित
सर्वश अपना
मान लिया है
जिसको अपना.
तोड़ दिया
उसको ही तुमने
जिसे था गढा
इन हाथों से.
कितने स्नेहिल
जज्बातों से....
याद नुझे है
अब तक सब कुछ
क्या कहना
अब बातों से...
गर देख सको
तो एक बार..
तुम दर्पण देखो.
अबतक का
अपना अर्पण देखो..
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