Monday, May 4, 2015

पंथ निहार रही 'यशोधरा'


मेरे प्रियतंम तुम कब आओगे
सूखे ये तन मन, सूखी सरिता
सूखे ये बाग बन पंथ निहार
इसमे फूल उगाने कब आओगे?
मेरे प्रियतम ! तुम कब आओगे?
निहार - निहार पथ थके नयन
कब दरस विधाता दिखलाओगे
नाम पद गया कलिंकिनी मेरा
यह दाग मिटाने कब आओगे ?
मेरे प्रियतम ! तुम कब आओगे?
झर - झर झरना, नयना बरसे
सुबह - दोपहरी - शाम को तरसे
मन की सब सारी मैल धुल गयी
सुख की सेज तुम कब लाओगे?
मेरे प्रियतम ! तुम कब आओगे?
जग बैरी हो गया, मुझे जीने ना दे
एक आस तुम्हारी मरने भी ना दे
दम घुटा जा रहा इससे है हमारा
तुम मुझे बचाने कब आओगे?
बोलो प्रियतम ! तुम कब आओगे?

डॉ जयप्रकाश तिवारी