एक शलभ हूँ मैं
रंगीन तितलियाँ
मन बहलाती हैं
प्यार में जीना
मरना सिखाती हैं
श्वेत तितलियाँ
पवित्रता लती हैं
कर्तव्य-बोध कराती
पथ सुदृढ़ बनाती हैं
तब मुस्काता हूँ मैं
जब आरोप लगता है
दीप बुझाने आया है
हक़ जताने आया है
उन्हें मैं क्या समझाऊं
उन्हें मैं क्या बताऊँ
प्राण तक तो दे दिया
अब कौन साप्रमाण लाऊँ ?
डॉ जयप्रकाश तिवारी