Tuesday, April 30, 2013

ऐ चाँद ! आज सच बतला दे...


ऐ चाँद ! आज सच बतला दे किसने मारी तुझे ऐसी ठोकर?

अबतक हो पड़े सुनसान गगन में अलग-थलग बेचारा होकर

धरती माँ तो तुझे खूब निहारती, भाई का जो तुझसे नाता है

इस नाते हमसब कहते मामा, हमे चिलमन से तू झाकता है

 

बोलो आखिर तुझे डर किसका? जिसे देख के तू घबराता है

वह नजर नहीं अत जब तुझको, तू ताक - झांक इठलाता है

क्यों पीला पड गया तेरा चेहरा? क्या यह सूरज तुझे डराता है

तू जब भी देखता सूरज को, झट ओढ़ के चादर छुप जाता है

 

       क्या शर्म तुझे इस बात पर आती, उधार की दीप्ति दमकते हो

       यह तेरी नहीं परायी है यह, तुम चांदनी यहाँ जो विखेरते हो

       जरा देख लो नीचे इस धरती पर, कैसे बेईमान चहकते हैं यहाँ

       यह चांदनी नहीं तूने चोरी की, मिला वरदान तुम्हे ये प्रकृति का

 

       करते अठखेलियाँ जिन तारों संग, उन्हें पहचान नहीं तुम पाते हो

       उनकी पहचान तो सूरज के संग, सब आपस में घुल मिल जाते हैं

       बनेगा सूरज यह, एकदिन कृष्णविवर; उस  में सिमट सब जायेंगे

       वहां होगी मुलाकात बहना से, सभी रिश्तेदार वहीं पर मिल जायेंगे  

 

        मारी है जिसने ठोकर तुझको,  निज गृह से दूर भगाया है ..

        समय चक्र घूमेगा फिर से, वही अब तुमको गले लगाएगा.....

        जिस स्रोत से छिटके हैं हम सब, जिस स्रोत से भटकें हैं हम सब

        स्रोत हमे मिल जायेगा, इकदिन ऐसा होयेगा, एकदिन ऐसा आयेगा.    

                     
          - जयप्रकाश तिवारी, भरसर, बलिया