प्रेम का पवित्र ढाई आखर
न सीख पाने वाले भद्रजन,
जाने कैसे इतनी जल्दी
सीख लेते हैं - चार अक्षरों
वाला यह शब्द - "नफरत".
सत्य का अनुपम सौन्दर्य
देख नहीं पाने वाले उन
नेत्रयुक्त अंधों को यह दुनिया
कैसे दिखती है इतनी हसीन?
सत्य में, प्रेम में, शिव में, राम में
ढाई अक्षर को नहीं ढ़ो पाने वाले :
असत्य की, नफरत की, हिंसा की
भारी - बोझिल गठरी कैसे ढ़ो लेते हैं?
शिवम के सत्य को नकारने वाले
किस सौन्दर्य की तलाश करते हैं?
क्या उन्हें पता नहीं क़ि जो सत्य है
वही शिव है, शिव स्वरुप ही प्रेम है.
प्रेम ही शिवम है, सत्य है और
प्रेम का प्रसार ही सुन्दरम है.
सत्य से निःसृत प्रेम ही न्याय है -
न्याय श्रेष्ठ ही नहीं, श्रेष्ठतर भी है.
इसलिए हमें स्वीकारना चाहिए
अपनाना चाहिए इस न्याय को,
सत्कर्म को, सत्य के इस मर्म को.
मानवता और मानवीय धर्म को.