Friday, October 11, 2013

नवरात्रि पर्व एक खोज है

काली और महाकाली
अर्थात डार्क इनर्जी
बौद्धिक विज्ञान जगत में
अभी भी अज्ञात
यह ‘गहनगूढ़ कालिमा,’
यह 'डार्क एनर्जी'.
यह 'डार्क-मैटर',
कालिमा की
चेतना-संचेतना....
हम खोज ही पाए हैं
अभी तक कितना?
मात्र छ: प्रतिशत,
इस गूढ़ रहस्य का.
चौरानबे प्रतिशत तो
अभी भी अनजान.

कौन करेगा आगे,
अब इसकी पहचान?
नवरात्रि पर्व खोज है-
इसी रहस्य की.
शैल-चट्टानों में ढूँढा
हमने अग्निशक्ति.
इसी शक्ति को शैलपुत्री
नाम दिया था,
अलग विशिष्ट
पहचान दिया था.
और जो सिद्धांत
गुम्फित है इसमें
है नाम उसी का है
“ब्रह्म चारिणी”.

स्वर-संगीत को
जाना हमने
इस 'चन्द्र घंटा' के
गहन सूत्र से,
शब्द –अर्थ –
निहितार्थ -संकेतार्थ.
इस शब्द औ अर्थ के
गहन मंथन से-
निकला जो कुछ,
वह गीत हुआ,
संगीत हुआ,
नवनीत हुआ...,
आगे चलकर
मनमीत हुआ.

जब मीत हुआ
तो भीत मिटा,
जब बदली दृष्टि,
चिंतन बदला.
इस शब्द अर्थ के
मंथन से ही,
चिंतन - संवेदना के
कम्पन से ही
जो थी क़ाली,
अब वह गोरी हुई.
हुई गौर वर्ण,
वह - 'गौरी' हुई.
वह 'दुर्गा' हुई..,
'नव दुर्गा' ..हुई.

डॉ. जयप्रकाश तिवारी