हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
तुम ब्लोगर हो, एक सर्जक हो.
तुम इस देश के पीड़ा भंजक हो.
यह माना! तुमको अधिकार नहीं,
पर,
दायित्व को क्यों तुम भूलते हो?
अपनी शक्ति को क्यों तुम भूलते हो?
क्या इस देश से तुमको प्यार नहीं?
हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
तुम्ही चिकित्सक, तुम सर्जन हो,
शिक्षक हो तुम, तुम हो सन्यासी.
तुम नदी - सरोवर तट के वासी.
रहते जो दूर गाँव में, तुम हो.
जो रहते शीत गृहों में, तुम हो.
विज्ञान रूप तू प्रयोगशाला में,
तुम यति रूप हो, यज्ञशाला में.
क्षमता को अपनी तुम पहचानो,
नया दायित्व अपना तुम जानो.
हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
तुम को ही, अलख जगाना है,
भारत एक नया बनाना है.
ऐसा भारत, जो भ्रष्ट न हो,
ऐसा भारत, जो त्रस्त न हो.
जो मजबूर न हो, किसी कोने से,
जो भरपूर हो,, चांदी - सोने से.
हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
एक शंख, जोर से फूंको न.
छेड़ो तान, जगें सब विस्तर से,
अब रहे न कोई, निद्रा में.
अब रहे न कोई, तन्द्रा में.
देशभक्ति का पाठ, पढ़े वे फिर से,
जो गए भटक, किसी कारण से.
हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
छेड़ो ऐसा तुम, दीपक राग,
घर - घर में जलती रहे चिराग.
चाहे हो निर्धन या दुखियारा,
हो दोनों समय चूल्हे में आग.
अपनी रोटी मिल - बाँट के खाएं,
मिल- बैठ के बिगड़ी बात बनायें.
हे ब्लोगर ! तेरे हाथ मशाल,
ऐसा प्रस्ताव कोई लाओ न,
जनता को तुम समझाओ न.
क्यों लूट रहे हो अपना देश?
क्यों फूंक रहे हो, घर - दरवेश?
लूटकर अपनों को, क्या पाओगे?
आएगी समझ, बहुत पछताओगे.
हे ब्लोगर ! छेड़ो ऐसी झंकृत तान,
गर्जन हो जिसमे, हो स्वाभिमान..
हो देश का जिससे, दुनिया में नाम.
हम रहें सतर्क, करें खुद निगरानी,
हों विफल शत्रु, उनके अरमान.
एक खौफ सा, उनमे छा जाए.
फिर दुबारा, आने का लेवें न नाम.,
हे ब्लोगर ! छेड़ो ऐसी झंकृत तान,
एक शंख, जोर से फूंको न.
गर्जन हो जिसमे, हो स्वाभिमान..
तुम ब्लोगर हो, एक सर्जक हो.
तुम इस देश के पीड़ा भंजक हो.
यह माना! तुमको अधिकार नहीं,
पर,
दायित्व को क्यों तुम भूलते हो?
अपनी शक्ति को क्यों तुम भूलते हो?
क्या इस देश से तुमको प्यार नहीं?
हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
तुम्ही चिकित्सक, तुम सर्जन हो,
शिक्षक हो तुम, तुम हो सन्यासी.
तुम नदी - सरोवर तट के वासी.
रहते जो दूर गाँव में, तुम हो.
जो रहते शीत गृहों में, तुम हो.
विज्ञान रूप तू प्रयोगशाला में,
तुम यति रूप हो, यज्ञशाला में.
क्षमता को अपनी तुम पहचानो,
नया दायित्व अपना तुम जानो.
हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
तुम को ही, अलख जगाना है,
भारत एक नया बनाना है.
ऐसा भारत, जो भ्रष्ट न हो,
ऐसा भारत, जो त्रस्त न हो.
जो मजबूर न हो, किसी कोने से,
जो भरपूर हो,, चांदी - सोने से.
हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
एक शंख, जोर से फूंको न.
छेड़ो तान, जगें सब विस्तर से,
अब रहे न कोई, निद्रा में.
अब रहे न कोई, तन्द्रा में.
देशभक्ति का पाठ, पढ़े वे फिर से,
जो गए भटक, किसी कारण से.
हे ब्लोगर! तुम क्यों सुस्त पड़े?
छेड़ो ऐसा तुम, दीपक राग,
घर - घर में जलती रहे चिराग.
चाहे हो निर्धन या दुखियारा,
हो दोनों समय चूल्हे में आग.
अपनी रोटी मिल - बाँट के खाएं,
मिल- बैठ के बिगड़ी बात बनायें.
हे ब्लोगर ! तेरे हाथ मशाल,
ऐसा प्रस्ताव कोई लाओ न,
जनता को तुम समझाओ न.
क्यों लूट रहे हो अपना देश?
क्यों फूंक रहे हो, घर - दरवेश?
लूटकर अपनों को, क्या पाओगे?
आएगी समझ, बहुत पछताओगे.
हे ब्लोगर ! छेड़ो ऐसी झंकृत तान,
गर्जन हो जिसमे, हो स्वाभिमान..
हो देश का जिससे, दुनिया में नाम.
हम रहें सतर्क, करें खुद निगरानी,
हों विफल शत्रु, उनके अरमान.
एक खौफ सा, उनमे छा जाए.
फिर दुबारा, आने का लेवें न नाम.,
हे ब्लोगर ! छेड़ो ऐसी झंकृत तान,
एक शंख, जोर से फूंको न.
गर्जन हो जिसमे, हो स्वाभिमान..