अध्यात्म ने
इस हिमालय से,
हिमाचल से ही
देखो ! पायी है;
अलौकिक शक्ति.
सती - पार्वती,
अम्बे - दुर्गे - क़ाली
गौरी और .....
जगदम्बे रूप में.
वहीँ इसी प्रस्थर से
इसके टक्कर से -
इसी गिरि से, शैल से,
भौतिक विज्ञान ने
पाया है - दाहक ऊष्ण
'अग्नि' - 'ऊष्मा'
स्फुलिंग - चिंगारी.
और इसके जल से,
झरनों और प्रपात से,
विज्ञान ने फिर पाया-
ऊर्जा स्रोत - जल विद्युत्.
चिकित्सा विज्ञान ने
पाया जीवन प्रदायिनी
दिव्य अलौकिक औषधियां..
वहीँ दार्शनिक को
प्राप्त हुआ - एक युग्म,
'शिव और शक्ति' का.
पुरुष और प्रकृति का.
साधक को मिला है,
मार्ग: कार्म - ज्ञान
योग और भक्ति का...
इस प्रकार यह
बूढा हिमालय ही है -
आदि स्रोत: साधना का.
ज्ञान का, अध्यात्म का,
विज्ञान का, दर्शन का,
सभ्यता और संस्कृति का..
साधना और वरदान का.
और भारत भूमि ने
पायी एक सजग प्रहरी,
एक योग्य संरक्षक .
कुशल, प्रवीण प्रशिक्षक
सबहि विद्याओं का.
हे गिरिराज! तुम्हे नमन,
बारम्बार नमन..!!..