Sunday, August 6, 2017

यह भी कोई बात हुई

ये शब्द
जो तुमको ही
हैं समर्पित, 
ये सब कितने
हैं भ्रान्त,
और तुम हो
इतने शान्त?
यह भी
कोई बात हुई?
कितनी मन मे
हलचल आज
गिरी कितनों पर
ये गाज और
तुम शान्त,
यह भी
कोइ बात हुई?
यहाँ मचा
कोलाहल घोर
और कान फाड़ू
ये शोर,
गीदड़ भी नाचे
बन के मोर
फिर भी
तुम इतने शान्त,
यह भी
कोई बात हुई?
यहाँ सबके
मन मे अभिमान
सब भरे हुये
हैं गुमान
ताने हैं
तीर कमान
नहीं है तनिक
उन्हे आराम,
मचा कितना
घनघोर कोहराम,
फिर भी
तुम इतने शान्त?
यह भी
कोई बात हुई?
कर दो
सबको निर्भ्रांत
मिटा दो मिथ्या
सब अभिमान
सब के सब
हों अब शान्त,
अरे ओ प्रभु
तब जा के
लगाओ ध्यान।
चहु ओर शांति,
अब नहीं अशांति,
तुम भी शान्त
और हम भी शान्त,
अब जा के
लगाओ ध्यान
रखो तुम
भक्तों का भी घ्यान,
मिले कुछ उनको
भी शांति सौगात,
पूरी अब जा के हुई
यह बात॥
क्षमा चाहता हूँ
प्रभु तुम से,
न चुभे तुम्हें
कोई मेरी बात॥
और ...
बढ़ता ही रहे
क्रम बातों का
कहीं टूट न जाये
अपनी यह बात।
अब जा के हुई
पूरी कोई बात॥
डॉ जयप्रकाश तिवारी

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-08-2017) को "सिर्फ एक कोशिश" (चर्चा अंक 2699) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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