Thursday, August 24, 2017

पत्र पिया के नाम

तुम्ही कहते थे तोता - मैना
सहजा सखाया द्वय सुपर्णा
जब से मुँह थोड़ा मोड़ा तुमने
हो गयी मैं पतझड़, अपर्णा,
मेरे मन के हर एक कोने मे
तुम ही तुम हो अब भी छाये
मन से मेरे जो उठे सब भाव
खुशबू तेरी ही उससे आये,
सारा उल्लास तुम्ही हो मेरी
तुम्ही हो मेरे मन की प्यास।
तुम्ही मेरे मन की हर पीड़ा,
 तुम्ही हो मेरे मन की आस,
बुझ न पाये प्यास ये मन की
रह लूँ मैं चाहे जितनी पास।
तुम नहीं जानते हालत मेरी
तू चाँद मेरा, मैं तेरी चकोरी
क्या तेरी भी दशा यही है?
क्यों आते नहीं हमारे पास?
कब तक रहूँ भाव जगत मे
कब पूरी होगी मेरी आस?
दुनिया हँसती दशा पर मेरे
पूछती वह, तुम क्या गाती?
तू ही हो मेरी गीत और छंद
बचपन से थे, तुम ही पसंद
सब डरा रहे, ऐसा ही होता
प्रेम विवाह सफल कहाँ होता?
हरतालिका निर्जला व्रत हूँ मैं
तन-मन तुम्हें समर्पित आज
रख लो प्रिय मान आज तू मेरी
ना कर फिर आज, मुझे उदास।
डॉ जयप्रकाश तिवारी