Friday, December 30, 2011

अन्तर प्रभात और रात्रि का



भोर का ताजगी भरा मौसम
जब चहचहाती हैं चिड़ियाँ,
जब फुदकती है गिलहरियाँ,
रंभाती हुई दौड़ती हैं गौएँ,
जब बरसात है पानी रिमझिम
मंद पवन से एक लय बनाकर,
जब विखेरता है उसे संगीतमय 
प्राण शक्ति के रूप में तब वह 
प्राण-वायु भागता है -'अवसाद'.
सारी उलझनें, सारी समस्याएं,
मन की निराशा और हताशा.
देता है वह एक अतिरिक्त ऊर्जा,
एक नवीन सोच, एक निदान,
एक समाधान उन अवसादों को
दूर भगाने, मिटाने के लिए 

जिसे 
थोप दिया था, रात के अँधेरे ने.
कमरे में चल रहे न्यूज चैनलों ने,
हमारी अपनी ही संवेदनाओं ने.
मुलायम विस्तार पर पड़ी हुयी 
सुगन्धित फूलों के कंटकों ने.

भयावह स्वप्न ने भी 
देखो क्या कमाल किया,
उसने तो भगा दिया था.. 
उस अन्तरंग मित्र को जो, 
न जाने कब आ गयी थी 
चुपके से, क्षणिक आराम पहुचाने,
थपथपाने, अपने गोद में सुलाने, 
उस अन्तरंग मित्र, प्यारी नीद को.
लेकिन इस संगीतमय भोर ने 
सोयी अन्तः प्रज्ञा जगा दिया, 
प्रभात की ताजगी और रात्रि का,
सारा अंतर विधिवत बता दिया.