उमड़ रहे हैं घुमड़ रहे हैं
कहीं छलक रहे है खूब
कहीं छलका रहे हैं खूब
कहीं घन गरज रहा हैं खूब
कहीं यह तरसा रहा हैं खूब
मौसम को क्या हुआ आज
यह बसंत क्यों हुआ नाराज?
बसंत तो चित्त को भाता था
एक अनुराग हृदय मे लाता था
आज ये हमसे रुष्ट है क्यों ?
भय एक मन मे लाया क्यों ?
आज भयभीत शासन - किसान
फसल न बन जाये एक श्मशान
यदि ऐसा कुछ होता है तो फिर
लूट जाएगा बेचारा बूढ़ा किसान ॥
कहीं छलक रहे है खूब
कहीं छलका रहे हैं खूब
कहीं घन गरज रहा हैं खूब
कहीं यह तरसा रहा हैं खूब
मौसम को क्या हुआ आज
यह बसंत क्यों हुआ नाराज?
बसंत तो चित्त को भाता था
एक अनुराग हृदय मे लाता था
आज ये हमसे रुष्ट है क्यों ?
भय एक मन मे लाया क्यों ?
आज भयभीत शासन - किसान
फसल न बन जाये एक श्मशान
यदि ऐसा कुछ होता है तो फिर
लूट जाएगा बेचारा बूढ़ा किसान ॥
डॉ जयप्रकाश तिवारी