अँधेरा हो या दिन का उजाला यादों ने तसल्ली दी।
कैसी याद है तेरी जिसने बगावटी चिंगारी फूंक दी। .
तुझे कुछ पता भी है, इससे कुछ नहीं होगा हासिल।
दिल- दिमाग के साथ-साथ व्यवस्था बदलनी होगी।
यहाँ घोर अँधेरा गली में ही नहीं,इन दिलों में भी बसा है..
तू दीपक बन चिंगारी बन तम दूर भगा दिलों में बसा है
मायूस उदासी ने इस समाज को गमगीन बना दिया है
आंसू नहीं स्वेद बहा,नेतृत्व कर, गूँजे,गतिशील किया है।
तलवार उठाने से कुछ नहीं होगा,औचित्य का प्रश्न उठा।
व्यवस्था बदल, सिद्धान्त बदल, तू नेतृत्व का प्रश्न उठा।
डॉ जयप्रकाश तिवारी