Thursday, June 14, 2012

मेरी रचना पुष्पों की माला



हे चिन्तक! तुझे प्रणाम!!, आज प्राप्त हुए मुझे,'अनुभूति के विभिन्न सोपान'.
चाहता हूँ उन्हें दीप मालाओं से सजा दूँ, क्योकि अब पूरे हुए मेरे अरमान, 

होती है जब मन में हलचल, तो करती है यह यात्रा: संदेह से सत्य तक का.
देख गुरु-शिष्य बदलते समीकरण, आया ध्यान 'समीकरण: तम और प्रकाश का

पूछता हू समीक्षकों- परीक्षकों से, आज के प्रखर चिंतकों से एक छोटा प्रश्न.
यह बसंत क्यों हुआ असंत? और कैसा है सितारों के उस पार का संसार

यह बात शब्द सम्प्रेषण की है, अब करो चाहे मुखर हो के या मौन वार्तालाप.
अब बहुत हो गया , ज्यादा बक - बक मत करो, शब्दों को अपने सरल करो.

कहते हो तो मान लेता हूँ, मेरी बात भी मानो, अँधेरी गुफा को दीपक बना लो.
हिम्मत न हार, यदि चुनौती दे रही है रात,  रे मन! अपना कदम बढ़ाओ तुम!

कमाल है, इस कविता की ऐसी महिमा, देखो गधे तक बन गए इंसान.
लेकिन आदमी, आदमी नहीं बन पाया, आखिर तड़प यह छोड़ दूं कैसे?

होती है जब मन में हलचल, उठते हैं भाव, होता है संवेदनाओं का उत्कर्ष.
प्रेम ही सृष्टि में गति का कारण, ऐसी ही है,यह प्रेम गति आदि से अब तक



                                                        डॉ. जय प्रकाश तिवारी
                                                        संपर्क: ९४५०८०२२४०