Saturday, June 9, 2012

हाथ पकड़ के तू लिखती है



कविता को कब रचा है मैंने?
कविता ने रचा स्वरुप है मेरा.
मैंने कब साहित्य लिखा है?
लिखा साहित्य ने सबकुछ मेरा.

लेख कहानी नहीं लिखा कुछ
नहीं भाषा पर अधिकार है मेरा.
मैं हूँ केवल निमित्त मात्र
जो रच जाता सब कहा है तेरा.

मै तो बस एक अनुरागी हूँ
जाता हूँ डूब मैं भाव में तेरे.
आदत सी बन गयी है अब तो,
हो तपती धूप या शीत सवेरे.

मैं तो अनाम का अनुरागी,
सब छोड़-छाड़ के हुआ विरागी.
लेकिन रखने मान तुम्हारा,
फिर से बना तेरा अनुरागी.

मैं तो बस करता हूँ वही
मन मेरे घुस जो तू कहती है.
ये जग चाहे जो कह ले मुझ को,
मेरा हाथ पकड़ के तू लिखती है.