Wednesday, November 3, 2010
तन दीपक मेरा मन दीपक
तन दीपक मेरा मन है दीपक, दीपक मेरा सपना है;
जग को कहीं करे आलोकित उससे रिश्ता अपना है.
घर को करे प्रकाशित दीपक, कुल का मान बढाता दीपक,
उषा का साथ निभाता दीपक, निशा को दूर भगाता दीपक .
आता है नित संध्या के संग, क्या-क्या रूप दिखाता दीपक,
घर में किरण को लाये दीपक, ज्योत्सना गले लगाये दीपक.
उज्ज्वलता को बाहर बाहर , काजल को ह्रदय समाये दीपक,
कोमल कांति, तेल शान्ति संग, दीपशिखा को भाता दीपक.
गौर वर्ण का प्यारा दीपक, कजरी मन को भाये दीपक,
बैठी काजल कंचन के ऊपर, स्नेह डोर से बंधा है दीपक.
चौकठ पर पहरेदार है दीपक, प्रवेश द्वार लहराए दीपक,
आंधी और तूफ़ान में देखो, साहस खूब दिखाए दीपक.
मिटटी का दीपक,पीतल का दीपक रोब जमाये चांदी दीपक,
सारे दीपक पड़ जाये फीके, जब कनकलता संग आये दीपक.
काया कांति हो जाए सो गुनी, जब अंतर लाओ जलाए दीपक,
काया की भी रहे न छाया , जब शव को आग लगाये दीपक.
देखो ध्यान से यदि दीपक को आशा की सदा जलाए दीपक.
कबीर के घर तेज है दीपक, वे लिए लुकाठी हाथ है दीपक.
तुलसी के घर भक्ति है दीपक, सूर का है वात्सल्य यह दीपक.
मीरा के पाव घुघरू है दीपक, नाची बन गिरिघर संग दीपक.
देखो जिसका घर उजियारा, गीता वहां कुरान है दीपक.
तुम भी बन जाओ मेरे भैया! , मेरे विश्व वसुधा का दीपक,
रखो, संभालो अपना दीपक, कर्त्तव्य का दूसरा नाम है दीपक.
हुई भंग यदि विधि व्यवस्था, घर को भी आग लगाता दीपक.
नहीं चाहिए मुझे निर्वाण, यदि अर्थ है इसका - 'बुझ जाना'.
मुझको मेरा दीपक है प्यारा, प्यारा उसका जलते रहना.
तन दीपक, मेरा मन है दीपक, दीपक मेरा सपना है,
जग को कहीं भी करे आलोकित, उससे रिश्ता अपना है.
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