Monday, August 8, 2011

दो पक्ष: मौन के

दो पक्ष: मौन के
निःशब्दता और मौन के,
दीखते है - दो पक्ष.
प्रथम मौन, शिशु की 'अज्ञता'.
द्वितीय, ज्ञान की - 'दिव्यता'.


बीच, इन्हीं दो पाटों के,
बिखरी और सिमटी पड़ी हैं-
हमारी अनुभूतियाँ, संवेदनाएं.
शब्द - प्रतीक और रचनाएं.


शब्दों से, अ-शब्द हो जाना,
निः शब्दता, मौन धारण करना.
प्रगति है; साधना की, आराधना की.
चेतना-दिव्यता की, ज्ञान- प्रज्ञान की.


जिसमे गति है, ऊर्जा है.
अनेकत्व तक से, एकत्व तक की.
अंततः, अलिंगी एकत्व का भी लोप.
निःशब्दता में, दिव्यता में शून्यता में.


यह तो रूपांतरण है,
गतिज ऊर्जा की, स्थितिज ऊर्जा में.
इस शून्यता में है, पतझड़ - बसंत.
जहां एक नहीं, सहस्रों अनंत.