Sunday, January 11, 2015

शक की बीमारी

प्रिये!
तुझे शक की
बीमारी है
तो शक करो
खूब करो ...
बेशक करो
किन्तु इस तरह
इतनी बेदर्दी से
निचोड़ो तो नहीं
मैं तो वैसे भी
हूँ अकड़ू-सा
नहीं सुकोमल
हूँ मैं तुझ-सा
जान तुम्हारी ही
जायेगी इस तरह
देखना !
सच कहता हूँ
इस दिल में
तू ही तू बसती है
इसे भी देखना
ध्यान में रखना
यह न कहना
चेताया नहीं
साजिश के तहत
बतया नहीं
वैसे मर्जी तुम्हारी
मौका अच्छा है
चाहो तो मुक़दमा
चला सकती हो
हत्या न सही
आत्महत्या के
उकसावे का आरोप
तो लगा सकती हो
मेरा क्या
विरोध करना नहीं
लेकिन डरता हूँ
कल को
तुम ही पछताओगी
जीवन नर्क बनाओगी।


डॉ जयप्रकाश तिवारी