Tuesday, July 26, 2016

दर्द की भाषा- परिभाषा (५)


दर्द -
एक रस है
कहीं सान्द्र
कहीं तरल है
सरल दर्द देखा
गरल दर्द देखा
सरस दर्द देखा
निष्ठुर दर्द देखा
निष्ठुर दर्द के
नेत्रों में हिय-रस
पूरा - पूरा घोल
दिया था
दर्द बना था
पाहन का
उस पर कुछ भी
न असर हुआ था
दर्द के कई पोल हैं
दर्द में कई होल है
ठोकर मार के देखा
दर्द यह
आत्मघाती गोल है ..
(क्रमशः जारी है )
डॉ. जयप्रकाश तिवारी

दर्द की भाषा-परिभाषा (4)


दर्द -
एक टीस है
उसकी अपनी 
ही एक रीति है
रोने नहीं देता
वह चैन से
सोने नहीं देता
दर्द की
दुहाई नहीं होती
दर्द सदा
बेवफाई नहीं होती
दर्द देते हैं-
अपने भी, पराये भी
दर्द धोते हैं -
अपने भी, पराये भी
दर्द बाँटते हैं -
अपने भी, पराये भी.
पर, होते हैनं
कुछ दर्द ऐसे
जिसे बंटाना तो दूर
कोई जान नहीं पाता
व्यक्ति अकेले ही
उसे आजीवन ढोता
यह दर्द ही उसका
प्यारा मीत होता
जीने का संबल होता
हार में भी जीत होता ..
(क्रमशः जारी)
डॉ जयप्रकाश तिवारी