दीपक,
तन ही नहीं जलाता,
वह मन भी है जलाता.
धूम-धूम जलता दीपक,
नहीं किसी को भाता.
जब तक
शोणित की हर बूँद
न निकल जाय.
जब तक तेल की
हर बूँद न जल जाय.
दीपक, हार नहीं मानता,
तो फिर नहीं मनाता.
दीपक का ताप ही,
सागर में बडवानल है.
दीपक का ताप ही,
काया में जठराग्नि है.
दीपक का
ताप ही धरा को
फोड़कर बाहर आता.
यही कभी सुप्त,
और कभी धधकता
ज्वालामुखी कहलाता.
प्यारे !
केवल दीपक का
यह लौ मत देखो,
लौ का रूप देखो,
बदलता स्वरुप देखो.
आज
रामलीला मैदान में,
राम के तीर और
रावण के सिर में
उसी की आग है.
दीपक को
प्यार दो! भरपूर दुलार दो!!
उसे कौतुहल मत बनाओ.
दीपक तो स्वयं जल रहा,
उसे तुम और न जलाओ.
दीपक
जब तक है मर्यादित,
घर की धवल चिराग है.
जब तोड़ दिया मर्यादा,
वह जंगल की आग है.