क्या दर्द वही जो छलक पड़ता?
क्या दर्द वही जो लोचन बहता?
क्या वही जिससे मन में गुबार
यदि दर्द यही, तो क्या है वह ?
अंतर में जो घुटता रहता है
आता ही नहीं बाहर को जो
विदग्ध लहर जो जःता है
औ पीकर नयनों का खारा जल
उसे शुष्क किये जो रहता है
डॉ जयप्रकाश तिवारी