Wednesday, September 28, 2011

माँ! अबकी सन्मार्ग दिखा देना

विकास विकास की करते बात
हम पहुच गए हैं भ्रष्टाचार तक.
आचार विचार सब भूल गए
छूट गया है शिष्टाचार तक.

आखिर क्या हमसे चूक हुई?
वह गली कौन जो छूट गयी?
कब राह गलत पकड़ी हमने?
कब गियर विकास बदली हमने?

है क्या विकास? सोचना होगा,
क्यों हो विकास? सोचना होगा.
हो कैसे विकास? सोचना होगा,
क्या आदर्श विकास? सोचना होगा.

विकास है - संभावनाओं का विकास.
विकास है - संवेदनाओं का विकास.
विकास है - दायित्वों का विकास.
विकास है - कर्त्तव्यों का विकास.

विकास के मूलतः दो ही क्षेत्र,
ऊर्ध्व विकास और क्षैतिज विकास.
पहले को कह लो तुम आध्यात्मिक
कह लो दूजे को, भौतिक विकास.

नहीं रखा हमने संतुलन इसमें,
यही एक चूक हुयी है इसमें.
भौतिक विकास तो खूब किया,
नैतिक विकास कहाँ है इसमें?

इसको दूसरे ढंग से सोचो,
सिर के बाल नहीं तुम नोचो.
रखो धैर्य और करो विचार,
तब समझोगे गति के प्रकार.

हम बात गणित की करते रहे,
विज्ञान की बात भी करते रहे.
लेकिन इतना समझ न आया,
दिशा विपरीत गति करते रहे.

विकास है - देवत्व तक जाना,
और पतन है - दानव बन जाना.
आज कहाँ हम खड़े हुए ?
बोलो किधर हमें अब जाना?

माँ! चाहे देव नहीं बन पायें,
स्वीकार नहीं दानव बन जाना.
रहे संरक्षित अंतर में मानवता,
अब मानव का ही अलख जगाना.


माँ से मिलजुल हम करें प्रार्थना,
हे माँ! अबकी सन्मार्ग दिखाना.
हे माँ! अबकी सन्मार्ग दिखाना.
हे माँ! अबकी सन्मार्ग दिखाना.