वह शाम ए अवध
का कोई एक पल था
या सुबह ए काशी का
ठीक - ठीक याद नहीं
वह इंडिया गेट था
या हर की पैड़ी
कौन सी थी वो घडी?
अब यह भी याद नहीं,
उस 'एक स्पर्श' के बाद
मुझे कुछ याद न रहा
यदि याद है कुछ तो
वही, वह एक स्पर्श
जिससे सब कुछ
मैंने पा लिया था,
जिसमे सबकुछ
मैंने खो दिया था
अब फिर उस स्पर्श का
संस्पर्श भी नहीं चाहता
वैसा हो भी नहीं सकता
स्वतः स्फूर्त नैसर्गिक था
न सोचा समझा था
न वह बनावटी था।
डॉ जयप्रकाश तिवारी