देखो ! ईश्वर ने हम सबको,
आत्मोन्नति का एक मार्ग दिखाया.
"अणुरोअणीयम महतो महीयान"
सूत्र को सरल-सुगम करके बतलाया.
कैसे बने विराट क्षुद्र से ? ,
अनुप्रयोग भी कर दिखलाया.
अणु से अमीबा- मत्स्य-कच्छ-वाराह,
और अर्द्ध-मानव से वामन तक.फिर
वामन से मानव; महामानव ....
महामानव से, पुरुषोत्तम-बुद्ध-योगेश्वर तक का.
अणु से विभु तक बन जाने का,
बन 'प्रकाश' छा जाने का - राह दिखाया.
कभी 'हँसकर - कभी रोकर', कभी 'निष्प्रिः,
कभी मौन' हो, उत्कर्ष की सरी कला सिखाया.
जड़ता से, निष्क्रियता से, कीट-पतंग से, पशुता से,
....इन सबसे...., मानवता को सर्वोच्च बताया.
नहीं है केवल यह मेरे भाई ! यह;
जैविक-भौतिक विकास की कोई कहानी.
छिपी हुई है इसके अन्दर, सुगठित-सुष्मित;
स्व-परिष्कार; आत्मोत्थान की गूढ़ कहानी.
करो दूर जड़ता-मूढ़ता, निष्क्रियता को,
अब छोडो पशुता-हिंसा, बर्बरता को,
अब ज्ञान-दृष्टि, प्रज्ञा-विवेक अपनाओ,
अपनी संस्कृति- प्रकृति का मान बढाओ,
छू लो शिखर तुम नैतिकता की;
मानवता की - ऐसी अलख जगाओ.