Sunday, May 22, 2011

बुद्ध का पत्र यशोधरा के नाम


बुद्ध का पत्र यशोधरा के नाम 


तुझे सोता छोड़ मैं आया था
मन  मेरा  भी  घबराया  था.
रह रह के मन फिर सोचता है 
औचित्य का प्रश्न कचोटता है.

मन पर हठ का जोर लगाया
व्रत उपवास का राह दिखाया.
लेकिन चला न कोई जादू
बार बार मन हुआ बेकाबू.


मृदुल हास परिहास ने तेरे
मुझको ऐसा नाच नचाया.
सुस्त सुनी और शांत मन को
चंचल और गतिशील बनाया.

लुट गयी नीद रात की मेरी
दिन का भी सुख चैन छिना.
सूना - सूना सब लगता है,
अन्दर बाहर एक तेरे बिना.

पहले  तो  ऐसी  बात  नहीं  थी
क्या मन के अन्दर चाह नहीं थी?
किया  अंतर  सब  इस  दूरी  ने
क्या संवेदना और जज्बात नहीं थी?

इस दूरी में क्या बात है ऐसी?
क्यों विह्वलता - चंचलता ऐसी?
गति से इसको क्या माप सकेंगे?
इस हास की कीमत जान सकेंगे?

इस एक हास की खातिर ही
दौड़े  थे राम ' मृग'  के पीछे.
इस एक हास की खातिर ही
भागे मधुसूदन 'मणि' के पीछे.


इस हास में इतना जादू क्यों?
परिहास  में  मन  बेकाबू क्यों?
हास-परिहास सब मन के भाव
जब पूरित मन तब नहीं अभाव.

मैं  क्यों  भागू  इसके  पीछे?
क्या मिला उन्हें जो भागे थे?
उनको  भी  क्या मिल गया?
छल - वैर- घृणा जो साधे थे.


सब कुछ मन की ही माया है
कहीं खिला धूप कहीं छाया है.
मन  को  वश  में  करना होगा
इसकी चंचलता को हरना होगा.

थमती चंचलता  - 'आक्टेट'  से,
थमती चंचलता - 'अष्टांगयोग' से.
थमती चंचलता - 'यम-नियम' से,
थमती चंचलता - 'योग -क्षेम' से.

तुझे सोता छोड़ जब आया था
तब  मेरा  मन  घबराया  था.
अब मन में नहीं कोई हलचल 
थम गया अंतर का कोलाहल.


जो तोड़ चुका जग बंधन को
वह कैद में क्या रह पायेगा?
आर्यसत्य और बोधिसत्व को
जन - जन तक फैलाएगा.

मन को पाषण करना होगा
धारण 'निर्वाण' करना होगा.
आर्य सत्य पहचानना होगा
अंतिम सत्य को जानना होगा.


निर्वाण ही सत्य है अंतिम
अंततः सबकी गति है अंतिम.
जब तक धारा पर दुःख होगा
यह बुद्ध नहीं फिर मुक्त होगा.
दुख  धरा  से  वह  मिटाएगा
सबको पद 'निर्वाण' दिलाएगा.




शब्द संकेत / निहितार्थ  
'
आक्टेट'       = रसायन विज्ञान के अक्रिय गैस की स्थिति जहां इलेक्ट्रान की चंचलता थम जाती है.
'अष्टांगयोग'   = यह बौध दर्शन की साधना प्रक्रिया है.
'यम-नियम'  = यह योग दर्शन की अष्टांग साधना क्रिया है.
योग -क्षेम'    = यह गीता का दर्शन है.
निर्वाण        = यह मुक्ति की अंतिम अवस्था है जहां से पुनः जन्म की, दुःख की सारी संभावनाएं समाप्त हो जाती है ठीक उसी प्रकार से जैसे भुने चने से अंकुरण की सारी संभावना समाप्त हो जाती है.
मृग           = रामायण का चर्चित स्वर्ण मृग.
'मणि'         = पौराणिक चर्चित कौस्तुभ मणि