बिना अर्थ के शब्द व्यर्थ
व्यर्थ है अर्थ बिना काम
काम व्यर्थ है, धर्म बिना
धर्म है व्यर्थ बिना मुक्ति,
सभी समाहित एक कर्म मे
सत्कर्म बिना सभी व्यर्थ।
सत से विलग होते ही यहाँ
कर्म वही, बन जाता कुकर्म
कुकर्मी का कोई धर्म नहीं है
कुकर्मी की चाहत केवल अर्थ,
अर्थ, निरंकुश भोग के लिए
भोगी जीवन को कहाँ मुकि?
मुक्ति नहीं तो कैसा वह धर्म
वह धर्म नहीं, वह घोर अधर्म
मचाया इस अधर्म ने हाहाकार
हे मानव खड़ा क्या सोचा रहा
बोलो,करोगे कब इसपर विचार?
डॉ जयप्रकाश तिवारी