Sunday, July 30, 2017

भाव सुमन



मन की श्रद्धा, भाव बुद्धि की 
आह्लाद हृदय का अर्पित सबको
तन के कर्म, श्रद्धानवत होकर 
शत शत वंदन करते हैं सबको ।

नमन है मेरा, अभिनंदन है 
वंदन उपवन के हर माली का 
और वंदन है इस प्राणवान को 
जिसने सेंचा है इस उपवन को । 

सींचा था जिसने रक्त स्वेद से 
तन- मन पूरा ही निचोड़ डाला 
होगा किन्तु कितना प्रसन्न वह 
कितना सुरभित उपवन रच डाला?

मैं भी आखिर जो कुछ भी हूँ 
खिला बढ़ा, इसी उपवन मे 
अब जो कुछ भी पहचान बनी है 
उसकी नींव पड़ी इसी उपवन मे ।

आज भी, अब भी भूल न पाता 
जो स्नेह मिला शिक्षण प्रांगण मे 
कक्षा शिक्षण की बात न पूछो 
थी विशेष बात, हर शिक्षण मे ।

चिर कृतज्ञ मैं आप सभी का 
करबद्ध प्रणाम स्वीकार करो,
मन की श्रद्धा, भाव बुद्धि की 
आह्लाद हृदय का अर्पित सबको।
यह भाव सुमन अर्पित सबको 
यह भाव सु-मन अर्पित सबको॥

डॉ जय प्रकाश तिवारी 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (31-07-2017) को "इंसान की सच्चाई" (चर्चा अंक 2682) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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