Tuesday, March 5, 2013

सम्बन्ध दर्शन और कविता का

क्षण क्षण के बीच जो अंतराल
वह भी तो एक क्षण ही है
कण कण के बीच में जो दरार
उसमे भी तो कोई कण ही है

ढूंढते ढूँढते अंतराल को
मापते मापते इस दरार को
जो चिंतन है वह दर्शन है,
अभिव्यक्ति है जो वह कविता है.

दर्शन है विधा एक ज्ञान की
इसकी तो दशा निराली है
कविता है हमे मार्ग दिखाती
भावों में अभिव्यक्ति कराती

होता फी गूढ़ तत्व अनावृत्त
जो त्रिभुज, वही वर्ग और वृत्त
बिना अभिव्यक्ति रह नहीं पाते
यह मानव की अपनी प्रवृत्ति

समझाते हैं जब मन को अपने
अध्यात्म रूप वह बन जाता
दिखलाना हो जब औरों को
विज्ञानं रूप में सामने आता

तुम बोलो तब क्या अंतर है -
विज्ञान और अध्यात्म जगत में
जो वहिर्मुखी विज्ञान है वह
अंतर्मन में जो प्रज्ञान है व्ह.

दोनों हैं दो पार्श्व ज्ञान के
बुद्धि चेतना सत्ता प्रज्ञान के
संवेग से हैं दोनों चंचल
संवेग रहित हैं शांत अविचल.

जो भेद मान लिया हमने
वह ज्ञान नहीं, अज्ञान है
अभेद जिसने देख लिया
उसी के पास तो ज्ञान है.