ओ मेरी अपराजिता... !
तू है अगर अपराजिता,
तो रहेगी तू अपराजिता.
मैंने कब चाहा,
तुझे करना पराजित?
हार की यह हार
है तुझे सादर समर्पित,
हार पहनोगी तुम,
है मेरी भी यही जिद.
देखा होगा तुमने
बहत से जिद्दियों को.
दीवानगी की
जिद भी देखी कभी?
जिंदगी गिरवी मेरी
यह जिद के नाम.
देखता हूँ कौन देता
है मेरा अब साथ?
तू अगर आयी तो
दूंगा तुझे फिर से जिता.
ओ मेरी अपराजिता.... !
ओ मेरी अपराजिता.... !
थी कल भी तू अपराजिता
हो आज भी अपराजिता.
रहोगी कल भी तू अपराजिता.
ओ मेरी अपराजिता.... !
ओ मेरी अपराजिता..... !