स्वर्ण और आभूषण में
सागर और लहरों में,
सूर्य और किरणों में
रजनीश और रश्मियों में.
आखिर क्या है - भेद?
और क्या है - अभेद?
आभूषण जो बनता है
स्वर्ण से ही किन्तु
स्वर्णकार और कलाकार
की हथौड़ी खाने के बाद.
लहरें जो उठती है सागर में
ही लेकिन पवन के झकोरों
ज्वार -भाता की हलचल
और उमंगों तरंगों के बाद.
किरने भी आती है धरती पर
सूर्य की चिता जलने के बाद.
रश्मियाँ भी धरा पर आती हैं
हने बार- बार ललचाती है
परन्तु सूर्य किरणों के चन्द्र
सतह से टकराने के बाद.
इनमे पूर्ववर्ती यदि अक्षर है
तो परवर्ती है - शब्द व्यापार.
जो तैयार करता है किसी
साहित्य किसी काव्य का आधार
इसी साहित्य में इसी काव्य में
अपने अस्तित्वपूर्ण अर्थ का विस्तार
पाता है - वह स्वर्ण, वह सागर..,
वह दिनकर वह रजनीश ....
बनकर किसी वागीश का शिष्य.