Sunday, September 26, 2010

भाषा हो हिंदी और देश हिंदुस्तान

भाषा हो हिंदी और देश हिंदुस्तान
देखो कितना सुंदर पवित्र है नाम.
धरा है इसकी उर्वरा कितनी?
है प्रकृति की क्षमता जितनी.

सतत खिले हैं इसी धारा पर
प्रज्ञान - विज्ञानं के सुमन निरंतर
झाँक लो चाहे गगन में ऊपर
या फिर देखो मही के अन्दर.

सागर को भी मथ डाला है
ऐसा उदाहरण और कहाँ है?
हिम शिखर पर किया आराधना
दूजा मिशाल ऐसी कहाँ कहाँ है?

करके सरल इस ज्ञान राशि को
हिंदी अब अलख जगाती है.
गहन - गूढ़ उपनिषद् वेदांत को
सहज लोक भाषा में समझती है.

हर भाषा को उद्भाषित करता
हिंदी को भी विकसित करता
फिर भी एक कष्ट है भारी
हिंदी बन न सकी भाषा राष्ट्र की
लग गयी नजर उसे ध्रितराष्ट्र की.

कौन उसे समझाएगा अब?
वीणा कौन बजायेगा अब?
डोर हाथ में अब है जिसकी
जाने क्यों उसकी पैंट है खिसकी?

हिंदी दिवस मानते हैं वे
हवा में हाथ लहराते हैं वे
आती है जब हाथ में बाजी
अंगूठा ही दिखलाते हैं वे.