गुरु पूर्णिमा पर्व
बहुत बड़ा सम्मान दिया है.
है जो मेरे व्यक्तित्व का सर्जक,
सब कुछ मुझ पर वार दिया है.
उसी का तन मन अर्पित उसको
श्रद्धा सुमन समर्पित है उसको.
ये सब भी, अब कहाँ है मेरा.
सर्वस उसका नहीं कुछ मेरा.
उस सु-नामी का नाम मैं क्यों लूँ?
धो डाला कलुष कषाय जो मैला.
उसे अमूर्त-अनाम-अरूप रहने दो
क्यों करूँ विराट का रूप मैं बौना.