तू वहीँ रह !
वह जो ऊंचा तख़्त तेरा.
अपनी जगह को
खूब पहचानता हूँ मै.
शोभायमान तू खूब है
इस ऊंची जगह पर,
अवतरण हो तेरा,
मुझ नाचीज खातिर,
हरगिज नहीं चाहता हूँ मै.
देखकर आहें न भरना
मेरी दशा का कारण तू नहीं.
चाहो तो लुढका देना एक कंकरी.
अब कब शांति चाहता हूँ मै?
मेरे लिए क्या कम है यह?
हो विराजमान जिस तख़्त पर;
सूखा उसका दरख़्त हूँ मै.
जय प्रकाश तिवारी
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