Thursday, January 20, 2011

एक अनुरोध - एक निवेदन



स्वतंत्रता मानव जीवन का वरदान है परन्तु यह स्वतंत्रता है अत्यंत ही महंगी....महँगी नहीं अमूल्य है यह ... लाखों स्वतंत्रता सेनानियों की बलि ली है इसने. स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस वर्ष में मात्र एक बार मानाने की चीज नहीं है, यह तो हमारी राजनैतिक और शासकीय / संवैधानिक  व्यवस्था भर है जिसमे समस्त देशवासी १५ अगस्त को स्वाधीनता से ओत-प्रोत  नजर आते हैं, स्वतंत्रता के गीत गाते हैं, खुशियाँ मानते हैं ..... और सायंकाल होते - होते थक कर सो जाते हैं. यही हाल २६ जनवरी गणतंत्र दिवस का भी है.
           
हमे सोना नहीं है, जागृत रहना है, सचेत और सतर्क रहना है इस स्वतंत्रता और गणतंत्र के प्रति. आध्यात्मिक पृष्ठभूमि के होने के नाते हम 'राष्ट्र देवता' के पुजारी हैं. साधक हैं राष्ट्रीय दायित्व के, राष्ट्रीय जिम्मेदारी के, राष्ट्रीय प्रगति में भागीदारी के. साधक की साधना उसकी कर्त्तव्य और उसकी जिम्मेदारी होती है इसलिए वह उस समय नहीं सोता जब सारी दुनिया सोती है. उस समय वह सतर्क दृष्टि से  निगरानी रखता है राष्ट्रीय सुरक्षा और संरक्षा सम्बन्धी गतिविधियों पर. वह सोता भी है, लेकिन तब जब शेष लोग इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए जागृत हो तैयार हो जाते हैं.

खेद की बात है की हमारी स्वतंत्रता आज भटक रही है, हमारा गणतंत्र भटक रहा है....अब अधिकतर संख्या उन लोगों की हो गयी है जो स्वतंत्रता और स्वच्छंदता में अंतर ही नहीं जान पा रहे हैं और जाने-अनजाने स्वच्छंदता को ही जीवन शैली का आधार बना बैठे हैं. जब हम देखते हैं नियमों की अवहेलना, सामाजिक मूल्यों की अवहेलना, परस्पर सद्भाव के शुचितापूर्ण संबंधों कीअवहेलना तो मन अत्यंत खिन्न हो उठता है. सभी प्रकार की अवहेलनाएँ - अवमाननाएँ और स्वच्छंदताएँ घोर अपमान है उन स्वतंत्रता सेनानियों का, वीर बलिदानियों का जिन्होंने हमरे स्वर्णिम भविष्य के लिए अपना हँसता -खेलता जीवन, निखरता वर्तमान न्योछावर कर दिया था. सच्चे अर्थों में उन वीरों की, सेनानियों की , बलिदानियों की सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी जब हम उनके सपनो के भारत निर्माण में अपनी जिम्मेदारी, अपने दायित्व और अपने सच्ची कर्ताव्यपरयानता का श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे. स्वाधीनता दिवस / गणतंत्र दिवस शपथ और संकल्प का दिन है. आइये एक संकल्प हम भी लें - राष्ट्रीय एकता और अखंडता के रक्षा की, सामाजिक सद्भाव और सौहार्द्र के सुरक्षा की.यदि अंतःकरण में ईश्वर का निवास है तो यह शारीर ही हमारा मंदिर है. आइये इस शारीर को आंतरिक और वाह्य रोगों से निरोग रखने का संकल्प ले.स्वस्थ और प्रडूष्ण मुक्त पर्यावरण की स्थापना में सहयोगी बने, स्वव्थ रहें तन से भी और मन से भी. लोभ - मोह - कषाय - कल्मष, आलस्य - प्रमाद को पास न फटकने दें और तैयार रहें सदैव स्वतंत्रता की रक्षा में सब कुछ बलिदान करने हेतु. साथ ही एक पुनीत दायित्व है हमारा - 'राष्ट्रीय आत्मा' की खोज का. हम अपनी व्यक्तिगत सुख -सुविधाओं के लिए तो सोचते हैं, प्रयासरत रहतें है और पाने का हर संभव उचित - अनुचित प्रयत्न करतें है परन्तु कितने कृतघ्न हैं हम ? क्या हमने कभी 'राष्ट्रीय आत्मा' के बारे में भी सोचा है? ..यदि सोचा भी है तो किया क्या सोचने के सिवा? कुछ महानुभावों के लिए तो यह प्रश्न भी अटपटा सा होगा, ऐसे प्रश्न उठाने वालों के प्रति उनके मन में विचित्र भाव होते हैं परन्तु उन्हें छोडिय, जो इसके महत्व को सोच रहें है.., समझ रहें हैं ...परन्तु यथोचित कदम नहीं उठा रहे, हम उनसे निवेदन करना चाहते है. और आगे आने का अनुरोध करते है. प्रत्येक राष्ट्र की अपनी 'आत्मा-अंतरात्मा' होती है, उसी अंतरात्मा से राष्ट्रीय चेतना, राष्ट्रीय मन-तन, राष्ट्रीय दायित्व का पोषण - पल्लवन होता है. कहने वाले इसे 'संस्कृति' और 'सभ्यता' भी कह देते है और मोटे अर्थों में राष्ट्रीय चेतना तक पहुचने के मार्ग भी यही हैं.. परन्तु आज जब संस्कृति और सभ्याया की बात करनेवाले ही बहुत थोड़े बचे हैं. जो बचे हैं उनकी आवाज में जन बल की शक्ति नहीं रह गयी है. साठ - बासठ वर्ष के स्वाधीनता और गणतंत्र को मानाने के बाद भी हम आज कहाँ और क्यों हैं? हां हमें प्रगति भी की है परन्तु मूल्यों की दृष्टि से देखे, मापें, हम कहाँ हाँ है? यह चिंतन और मनन का विन्दु यदि आज बनाया जासके तो मेरी समझ में यही आज सबसे बड़ी श्रद्धांजलि होगी शहीदों को, इस गणतंत्र दिवस के पावन पर्व  पर.

अपने ब्लॉग मित्रों से जिनसे सदा ही प्रेरणा और मार्ग दर्शन मिला है, सतत स्नेह और सत्कार मिला है, उनसे भावभरा अनुरोध है, बार -बार निवेदन है कि इससप्ताह इस विन्दु को अपने लेखन - चिंतन का आधार बनाये और अपनी धारदार लेखनी को, यशस्वी तूलिका को शब्दों और चित्रों के माध्यम से प्रसरित करें की कृपा करें. राष्ट्रीय चेतना के जागरण में आपकी एक आहुति भी पूरे राष्ट्र में सुगंघ बन कर छा जायेगी. एक प्रयास तो किया जाय..अनुरोध के साथ पुनः निवेदन और विश्वास भी है आपके समर्थन, सहयोग और मार्गदर्शन का..

हे राष्ट्र ! तुझे नमन! शत-शत नमन !!.
हे राष्ट्रीय आत्मा ! तुझे कोटिशः प्रणाम !!.
हे
राष्ट्रीय चेतना ! तुझे भाव भरा सलाम !!.