आज फिर याद आयी
कहानी मुंशी प्रेमचंद की.
एक बार फिर प्रमाणित हुयी
परिभाषा - 'न्यायाधीश'की.
पंच होता है - 'परमेश्वर'
उसकी जाति उसकी आस्था,
उसका मजहब उसका धर्म,
है मात्र और मात्र - 'न्याय'.
नहीं कर कर सकता वह
किसी के भी साथ - 'अन्याय',
क्योकि न्याय है- 'समग्रप्रेम',
न्याय है एक - 'आराधना'
न्याय है - 'एक साधना'
न्याय है एक - 'उपासना',
न्याय है इन के मूल में 'सना',
चाहे जैसी भी हो - 'संवेदना'.
न्याय कुर्सी पर बैठा इंसान
नहीं होता हिन्दू या मुस्लमान,
वह होता केवल - 'न्यायी इंसान,
'पंच परमेश्वर' और 'न्याय भगवान्'.