तू शर्म हया की
बात न कर
ये तो कब की
बिक चुकी यहाँ,
यहाँ सूरत बिकती
यहाँ सीरत बिकती
बिकता है
यहाँ भोलापन ।
सब कुछ मिलता
यहाँ दौलत से
मिलेगा न कुछ
यदि पास है केवल
कोरा पावन मन ॥
बिकने वाला
यहाँ मानव है तो
खरीदने वाला भी
मानव ही है,
बिकने वाले के
वस्त्र श्वेत
क्रेता के उससे
अधिक श्वेत ।
यहाँ कठिन हो गया
करना भेद
यहाँ मानव कौन?
और दानव है कौन?
डॉ जयप्रकाश तिवारी