बनाता है मानव को संवेदी,
चिन्तनशील और विवेकी.
यही बनाता है मानव को,
महामानव और दिव्य मानव.
यह औचित्य का प्रश्न ही,
बनाता है व्यक्ति को चिंतक,
वैज्ञानिक, दार्शनिक और संत.
औचित्य का प्रश्न जहाँ
सार्थक है 'स्व' के लिए,
वहीँ उपयोगी है उतना ही
'सर्व' के लिए, 'समष्टि' के लिए.
औचित्य का प्रश्न मानव के,
विचार शक्ति और बोध की
अद्भुत अमूल्य निधि है.
औचित्य के प्रश्न के अभाव में,
हम हो जायेंगे पतित और दूषित.
बन जायेंगे मानव से दानव.
फिर यह औचित्य्का प्रश्न ही,
मार्ग और सन्मार्ग बताएगा,
दानव से मानव और देवत्व की,
उच्च कोटि तक पहुचायेगा.
इस प्रकार यह अमूल्य है..