विचार आते हैं, विचार जाते हैं,
विचार तैरते हैं, विचार डूबते हैं,
विचार ठिठकते हैं, विचार मटकते हैं,
अगर हटा ध्यान, विचार भटकते हैं,
लेकिन करना विचार कहाँ सबको है आता?
परम्परा विचार की, अब कौन है निभाता?
अब करना विचार तो, एक शिष्टाचार है,
कहूँ क्या? यहाँ भी घुस गया भ्रष्टाचार है.
जो आता मन में विचार, वह तो निस्पृह 'मति' है,
औचित्य का विचार, बनाता, सुमति - कुमति है.
विचार ही है प्रेरक, और ईंधन उस 'मति' का,
विचार ही है कारक, और कारण उसमे गति का.
विचार को संवार लो, फिर-फिर से विचार लो.
विचार को विचार की तराजू पर विचार लो.
है विचार तत्त्व यह बहुत ही उपयोगी....
आज त्याग रहे विचार, यहाँ बड़े -बड़े योगी.
विचार से ही बनते हैं, सुविचार और कुविचार,
लेकिन इस बात पर अब कौन करता विचार.
मेरे इस विचार पर कुछ तो करिये विचार...
बताइये श्रीमान अब, आपके क्या हैं विचार?