कविता कोई
चातुर्य नहीं है
शब्दों का.
वह दिल से
निःसृत एक
आवाज है,
एक स्पंदन है;
अभिव्यक्ति है.
यह साज की
मर्जी साथ दे,
या न दे ;
वह साज की
रही नहीं कभी
मोहताज है.
क्योकि साज को
कानों तक पहुचने
के लिए ध्वनि का
सतत साथ चाहिए
परन्तु कविता तो
संकेतो- प्रतीकों से
भी पहुचती है -
गंतव्य तक.
मौन में भी
पहुचाती है
मन के
कोने कोने
तक अपनी
सुमधुर आवाज.