अजी सुनते हो..... ?
विजयी मुद्रा में पत्नी ने आवाज लगायी.
तुम नाहक डरते थे, बोर्डिंग स्कूल पर भड़कते थे,
कोसते रहते थे, बच्चा बिगड़ जाएगा.
अर्थ का अनर्थ सीख कर घर आयेगा.
अब मैं जब भी करती हूँ पूजा - आरती,
पीछे खडा रहता है, प्रेम से भजनों को सुनता है.
मन ही मन कुछ गुनता है....दुहराता है ..
बाप ने प्रसन्न होकर बेटे को बुलाया, दुलराया,
बेटा! तुम तो बहुत समझदार हो गए हो,
संस्कारी भी बन गए हो पढायी के साथ-साथ,
पूजा - पाठ में भी मन लगाने लगे हो.
अपने विचार मुझे भी बताओ, माँ को समझाओ.
हां डैड ! वहाँ स्कूल की रीति बदल गयी है,
वहाँ टीचर अब भजन के साथ उसका
अर्थ भी बताते हैं, विस्तार से समझाते हैं-
जैसे - 'ॐ जय जगदीश हरे',
"हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे"
"हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे' का अर्थ.
इसका अर्थ हुआ कि भगवान् न गोरे हैं न सांवले,
वे तो हरे -हरे हैं, गाँधी जी वाले, एकदम कडकडिया.
डैड! नाराज क्यों होते हो ?
हनुमान चालीसा में भी तो लिखा है-
'होत न आज्ञा बिनु पैसा रे'.इसके बिना कुछ नहीं होता.
भगवान् ही जब लंका गए थे खाली हाथ क्या हुआ?
सीता जी से उधार लेना पड़ा था , भजनों में ही लिखा है-
"मार रावण को वहां उधार सीता का किया'.
इसी उधारी को चुकाने के लिए सोने की सीता बनानी पड़ी थी.
माँ - बाप ने बेटा के दिव्य ज्ञान पर सर पीट लिया .
जब प्रिंसिपल से की शिकायत,
क्या यहाँ यही पढ़ाया जाता है?
अर्थ और अर्थ में भेद नहीं बताया जाता?
उद्धार और उधार में अंतर नहीं बताया जाता?
प्रिंसिपल मुस्कुराते हुए बेशर्मी से बोला -
हम आज की आवश्यका, नीड़ और दरकार पढाते हैं.
तभी तो हमारे बच्चे मनेजमेंट कोर्स में धड़ल्ले से आते हैं.
संस्कार सिखाना हो घर पर सिखाइए,
बोर्डिंग में क्यों भेजते हो? हिंदी स्कूल में पढ़ाइये.
माँ-बाप ने नाम कटवा दिया और
छोटे बच्चे का नाम मोहल्ले के
एक हिंदी स्कूल में लिखवा दिया.
कुछ दिनों बाद 'नेचर' को 'नाचूरे'
याद करते सुन बाप का माथा ठनका.
विद्यालय जाकर शिकायत की.
प्रिंसिपल ने टीचर को बुलाया,
डांट की एक घुट्टी पिलाया -
तुम्हारी शिकायत आयी है..,
ठीक -ठीक पढ़ाया करो नहीं तो
तुम्हारा फचूरे (future) बिगाड़ दूंगा.
परमामेंती (permanent) के लाले पड़ जायेगे.
उधर बाप का बहुत बुरा हाल था अब वह कहाँ जाए?
आखिर यह पतन है किसका - शिक्षा का? शिक्षक का?
विद्यार्थी का? अभिभावक का? समाज का या संस्कार का?