Thursday, April 11, 2013

नवरात्रि के पावनपर्व पर


 मांगू तुझसे, तो क्या मांगू
सब कुछ तो तूने दे डाला
तन-मन अपना मथकर के
पीयूष स्रोत सब दे डाला.
खाने को रचा कानन-उपवन
पीने को दूध, दधि औ छाछ,
यह प्राणवायु जिनसे मिलती है
मानो तुम, कुछ उनका उपकार.

दे चुकी सब माँ, जो देना था
अब तुझको देना है प्रतिकार,
ऋण चुकता क्या कर पायेगा
पर, कुछ तो अपना भार उतार.
अब भी तू चाहता है अवदान
अरे! सीख तुझे कब आएगी?
कब छूटेगा लघुता-अभिमान?

तू कितना बन गया कृतघ्न?
सब भूल गया उसका उपकार
क्यों मूर्ख बना, सुन ओ नादान
अब कुछ तो अपना भार उतार!
कुछ तो बनो ! उसका कृतज्ञ,
क्यों फूला-फूला फिरता है तू
यह प्राण उसी के दम पर है,
तू कुछ तो अपना भार उतार !!


डॉ. जयप्रकाश तिवारी
तिवारी सदन
ग्राम / पोस्ट भरसर
जिला बलिया (उत्तर प्रदेश)