जीवन के पुरुषार्थ है - चार,
धर्म - अर्थ - काम और मोक्ष.
अर्थ औ काम को शाषित करता
'धर्म - सिद्धांत' और यह 'मोक्ष'.
मानव जीवन सुख की है सरिता,
जब 'धर्म - मोक्ष' के बीच है बहता.
लेकिन जब वह तोड़ता मर्यादा,
'गन्धैला नाला' है जग कहता .
धर्म विहीन आचरण जो होता.
होता प्रतिगामी मर्यादा विहीन.
अर्थ लोभ की लालसा में देखो,
वे भी गिर जाते, जो होते प्रवीण.
चाहिए यदि सुख-शान्ति जीवन में,
चत्वारि पुरुषार्थ को मानना होगा.
धर्म और मोक्ष के कगार बीच,
जीवन सरिता को बहना होगा.