Wednesday, March 8, 2017

बोलो समाज, क्यों हो तुम मौन?


जब हर मन में बसता पुरुष
हर पुरुष में बसती नारी है
तब 'नारी' 'पुरुष' क्यों कहता
क्यों देवी या कुलटा कहता?
क्यों बाँटते दो छोर में नारी को
इसके मध्य बहित कुछ घटता.
नारी को रहने दो केवल नारी
इन अतियों के बिच वह हारी है.
नारी क्या सामान्य मानव नहीं?
क्यों सामान्या की अधिकारी नहीं?
उसे नहीं चाहिए "देव' का पद"
पर कुलटा, कामिनी कहना छोडो.
संवेदना नारी मन की श्रेष्ठतर
संवेदना से ही नाता तुम जोड़ो..
संवेदी नारी सबकुछ कर सकती
बनती 'कुलटा', 'देवी' वह बनती
तो सोचे समाज इस बात को कि
'देवी' छवि उससे क्यों छिनती?
क्यों करता समाज इतना मजबूर
बन जाती संवेदनाये , गरल - क्रूर
जब विकृति उभर कर आती है
विभत्स स्वरूप ही दिखलाती है
लेकिन इन सबका कारण कौन?
बोलो समाज, क्यों हो तुम मौन?
डॉ. जय प्रकाश तिवारी