जहां रहता हूँ मैं वहाँ कुछ ही वर्षों में कट गए हरे पेड़.
उग आये हैं अब नए - नए पेड़, बाग़, उपवन और बगीचे.
सजीव लताओं के नहीं, पत्थरों कक्रित, मौरंग सीमेंट के.
उग आये हैं अब नए - नए पेड़, बाग़, उपवन और बगीचे.
सजीव लताओं के नहीं, पत्थरों कक्रित, मौरंग सीमेंट के.
यहाँ हरियाली भी है क्योकि लोगों ने पुतवा रखीं हैं दीवारें.
यहाँ चिड़िया नहीं चहकती, यहाँ महिलाएं चहकती है.
यहाँ भौरे नहीं गुनगुनाते, यहाँ मनचले गुनगुनाते हैं.
यहाँ मधुमक्खियों के छत्ते, दूर तक भी नजर नहीं आते,
यहाँ चिड़िया नहीं चहकती, यहाँ महिलाएं चहकती है.
यहाँ भौरे नहीं गुनगुनाते, यहाँ मनचले गुनगुनाते हैं.
यहाँ मधुमक्खियों के छत्ते, दूर तक भी नजर नहीं आते,
लेकिन कमी खलती नहीं, यहाँ आदमी ही डंक मारते है.
इस बाग़ में स्वच्छ सुरभित वायु नहीं मिलती.
इस बाग़ में स्वच्छ सुरभित वायु नहीं मिलती.
यहाँ पर मिलती है - नालियों की सड़ी बदबू.
सड़कों से उड़ते कागज़ पन्नी, पाउच के टुकडे.
सावन में यहाँ कजरी नहीं होती,
छत पर भी कभी झूले नहीं पड़ते.
सड़कों से उड़ते कागज़ पन्नी, पाउच के टुकडे.
सावन में यहाँ कजरी नहीं होती,
छत पर भी कभी झूले नहीं पड़ते.
लोग जरूर झूल जाते है पंखों से.
लोग आपस में न गले मिलते हैं
न लट्ठ चलते है, गाव की तरह.
यहाँ कट्टे और आग्येयास्त्र चलते हैं.
पालतू चौपाया भी सड़कों पर घूमते हैं.
स्पंदन - संवेदनाएं तो कहीं दीखती नहीं.
आखिर हम पत्थरों के बाग़ में रहते हैं,
कहनेवाले इसी को कालोनी/शहर कहते हैं.
यहाँ कट्टे और आग्येयास्त्र चलते हैं.
पालतू चौपाया भी सड़कों पर घूमते हैं.
स्पंदन - संवेदनाएं तो कहीं दीखती नहीं.
आखिर हम पत्थरों के बाग़ में रहते हैं,
कहनेवाले इसी को कालोनी/शहर कहते हैं.