मन की बात न पूछो तुम,
कितनी बड़ी इसकी है दुम?
अकेला मन यह जाता ऊब,
और देख भीड़ घबराता खूब.
ऊब अकेलापन से ही यह
अरमान सजाकर दुई हुआ.
कुछ बढ़ा चढ़ा इतना अनुराग,
देखते - देखते ही छ: चिराग.
अब भीड़ देखकर चिढ़ता है
रह रह कर देखो कुढ़ता है.
दौड़ा पहले चिकित्सालय में
अब दौड़ रहा विद्यालय में.
दोनों ही जगह है लूट मची
जिसपर उसका कोई जोर नहीं.
इस आपा धापी में हुआ पस्त
हो गया जीवन में अब त्रस्त.
नोक - झोक तो थी पहले ही,
अब तू तू - मैं मैं का अभ्यस्त.
लड़ते लड़ते बाहर और भीतर
सचमुच ही हो गया है पस्त.
चिढकर हुआ पलायित घर से
सबसे सुन्दर है अकेलापन.
शांत बैठ देखो अब दर्पण.
है यहाँ नहीं अब कोई गम.
डॉ. जय प्रकाश तिवारी
संपर्क: ९४५०८०२२४०
कितनी बड़ी इसकी है दुम?
अकेला मन यह जाता ऊब,
और देख भीड़ घबराता खूब.
ऊब अकेलापन से ही यह
अरमान सजाकर दुई हुआ.
कुछ बढ़ा चढ़ा इतना अनुराग,
देखते - देखते ही छ: चिराग.
अब भीड़ देखकर चिढ़ता है
रह रह कर देखो कुढ़ता है.
दौड़ा पहले चिकित्सालय में
अब दौड़ रहा विद्यालय में.
दोनों ही जगह है लूट मची
जिसपर उसका कोई जोर नहीं.
इस आपा धापी में हुआ पस्त
हो गया जीवन में अब त्रस्त.
नोक - झोक तो थी पहले ही,
अब तू तू - मैं मैं का अभ्यस्त.
लड़ते लड़ते बाहर और भीतर
सचमुच ही हो गया है पस्त.
चिढकर हुआ पलायित घर से
सबसे सुन्दर है अकेलापन.
शांत बैठ देखो अब दर्पण.
है यहाँ नहीं अब कोई गम.
डॉ. जय प्रकाश तिवारी
संपर्क: ९४५०८०२२४०