साहित्य नहीं होते
शब्द भंडारण मात्र
कठपुतलियों सी
कोई उछलकूद
अथवा उक्तियों की
कोरी कटाक्ष मात्र,
कोई स्वर्ण मुकुट
रेशमी पाजेब या
रोली, तिलक, रुद्राक्ष ।
और ये साहित्य
नहीं होते टंकित
केवल कागज पर ही,
यह धरा की पीठ
सागर की लहरों
पर्वतों की
नंगी छती पर भी
टंकित होते हैं कररीने से
जहां घुले होते हैं इसमे
परिस्थितियों के सत्व
जिसे देख पाती है
केवल संवेदनशील
साहित्यकार की अक्षि।
ये प्रतीक ही तो हैं
साहित्य के विभिन्न प्रष्ठ
प्रत्येक पृष्ठ पर गड़ी है
साहित्यकार की
तीक्ष्ण दिव्य दृष्टि ॥
शब्द भंडारण मात्र
कठपुतलियों सी
कोई उछलकूद
अथवा उक्तियों की
कोरी कटाक्ष मात्र,
कोई स्वर्ण मुकुट
रेशमी पाजेब या
रोली, तिलक, रुद्राक्ष ।
और ये साहित्य
नहीं होते टंकित
केवल कागज पर ही,
यह धरा की पीठ
सागर की लहरों
पर्वतों की
नंगी छती पर भी
टंकित होते हैं कररीने से
जहां घुले होते हैं इसमे
परिस्थितियों के सत्व
जिसे देख पाती है
केवल संवेदनशील
साहित्यकार की अक्षि।
ये प्रतीक ही तो हैं
साहित्य के विभिन्न प्रष्ठ
प्रत्येक पृष्ठ पर गड़ी है
साहित्यकार की
तीक्ष्ण दिव्य दृष्टि ॥
डॉ जयप्रकाश तिवारी